मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं?जानिए भारत की अर्थव्यवस्था किस विचारधारा से प्रेरित है

अर्थव्यवस्था में उत्पादन का काफी अहम् भूमिका रहती है अतः उत्पादन ही अर्थवयवस्था का वह प्रारम्भिक घटक है जिससे किसी भी देश की अर्थवयवस्था फलती-फूलती है। अब प्रश्न यह उठता है की , क्या उत्पादन पर पूरी तरह से सिर्फ सरकार या राज्य की जिम्मेदारी होगी या राज्य और सरकार दोनो की संयुक्त जिम्मेदारी। अब विश्व के अलग अलग देश अपनी विचारधाराओ के अनुसार उत्पादन पर नियंत्रण करने हेतु तीन प्रणालियों को जन्म देते है।

नमस्कार दोस्तों आज इस लेख के माध्यम से हम लोग अर्थव्यवस्था के संगठन के अंतगर्त “मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?” को जानेंगे।

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था

पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की विचारधारा 1776 में प्रकाशित एडम स्मिथ की मशहूर किताब “The Wealth of Nation ” का स्रोत है। एडम स्मिथ के इस किताब में कुछ खास विचारो को जन्म दिया जो सबसे ज्यादा पश्चिमी देशो को प्रभावित किया।

एडम स्मिथ ने अपने मशहूर किताब “The Wealth of Nation ” के माध्यम से अपने विचार में श्रम विभाजन पर जोर देते हुए कहा की अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए बल्कि अर्तव्यवस्था बाजार के नियमो से चलना चाहिए जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।

एडम स्मिथ का मानना था की बाजार में एक अदृश्य हाथ काम करता है जिसको Demand और Supply कहते है ,यही Demand और Supply देश में संतुलन की स्थिति लाएंगे और आम लगो की स्थिति बेहतर होगी।

अतः पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का अर्थ उस अर्थव्यवस्था से है जहा उत्पादन पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था जैसे क्या उत्पादन करना है ,कितना उत्पादन करना है और किस कीमत पर बेचना है सब कुछ बाजार के नियम तय करते है।

अतः जब संयुक्त राष्ट्र अमेरिका स्वतंत्र हुआ तो उसने एडम स्मिथ के विचारो को अपने नीतियों में शामिल किया। धीरे -धीरे यूरोपीय देश भी इस विचारधारा से प्रभावित होने लगे और 1800 आते-आते यूरोपीय और अमेरिकी देशो को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था कहा जाने लगा।

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राज्य अर्थव्यवस्था

राज्य अर्थव्यवस्था की विचारधारा जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स (1818 -1883) से प्रभावित है। यह विचारधारा 1917 की वोल्शेविक क्रांति के बाद सोवियत संघ में नजर आयी। ध्यान दीजिये राज्य अर्थव्यवस्था की दो विचारधारा नजर आती है, जिसमे पहली विचारधारा को समाजवादी अर्थव्यवस्था कहते है (सोवियत संघ) और दूसरी विचारधारा को साम्यवादी अर्थव्यवस्था (चीन) कहते है।

अब प्रश्न ये उठता है की राज्य अर्थव्यवस्था की विचारधारा की उत्पति क्यों हुई इसका सीधा और सरल उत्तर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के लोकप्रियता के विरोध में हुआ। राज्य अर्थव्यवस्था की विचारधारा पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के विचारधारा के बिल्कुल विपरीत है।

समाजवादी अर्थव्यवस्था के अंतगर्त उत्पादन के साधनो पर सामूहिक नियंत्रण होता है जबकि पुरे अर्थव्यस्था को चलने में सरकार की भूमिका होती है।

जबकि साम्यवादी अर्थव्यवस्था (चीन) के अंतगर्त पुरे अर्थव्यस्था को चलने में सरकार की भूमिका होती है। जिसमे श्रम कानून से लगाए संसाधन ,सम्पति सबकुछ शामिल होता है।

मिश्रित अर्थव्यवस्था

समय था 1929 का जब आर्थिक महामंदी ने पूँजीवादी और राज्य अर्थव्यवस्था के विचारधारा का कमर तोर दिया। अमेरिका ही नहीं पश्चिमी देशो को भी आर्थिक महामंदी ने पूरी तरह से झकझोर दिया जिसके चलते बेरोजगारी , भुखमरी ,उद्योग पर तालाबंदी की स्थिति उत्पन हो गयी। इन सभी परिस्थितियों से निपटने में एडम स्मिथ और कार्ल मार्क्स की विचारधारा बिफल रही।

आगे चलकर इस परिस्थिय से निपटने के लिए एक नयी विचारधारा का जन्म होता है जिसको मिश्रित अर्थव्यवस्था कहते है। इस विचारधारा की अवधारणा मेनार्ड केंस की मशहूर किताब “The General Theory of Employment, Interest and Money ” में शामिल था।

मेनार्ड केंस ने बाजार के अदृश्य हाथ (Demand और Supply) यानि सरकार की भूमिका न होने पर (पूँजीवादी अर्थव्यवस्था ) नाराजगी व्यक्त किये उन्होंने कहा की अदृश्य हाथ (Demand और Supply) बाजार में स्थिरता तो पैदा कर देते है लेकिन गरीबो के हक़ को भी छीन लेता है।

अतः मिश्रित अर्थव्यवस्था की विचारधारा के अन्तरगर्त उत्पादन और वितरण पर राज्य और बाजार दोनों का मिश्रित सहयोग होता है।

भारत की अर्थव्यवस्था किस विचारधारा से प्रेरित है ?

भारत में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया 1991 में शुरू हुई। भारत तो स्वंतत्रता के बाद से ही मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला देश रहा है। लेकिन 1991 में भारत के लिए एक नई मिश्रित अर्थव्यवस्था की तलाश शुरू हुई।

स्वतंत्रता के बाद भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया, उस दौर में मिश्रित अर्थव्यवस्था को लेकर दुनिया भर में भ्रम की स्थिति थी। मिश्रित अर्थव्यवस्था में कुछ आधारभूत और महत्वपूर्ण क्षेत्र की आर्थिक जिम्मेदारी केंद्र एवं राज्य सरकारों की होती है और बाकी आर्थिक गतिविधियों को बाजार के निजी समूहों के लिए छोड़ दिया जाता है

भारत ने स्वतंत्रता के बाद जिस मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया वह उस वक्त की सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक परिस्थितियों के अनुकूल थी। 1990 के दशक में भारत में आर्थिक सुधार शुरू हुए तब अर्थव्यवस्था में सरकार और बाजार की हिस्सेदारी को नए सिरे से परिभाषित किया गया और एक नई मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया। सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में बदलाव के चलते सरकार और बाजार की हिस्सेदारी में बदलाव हुआ।

नई मिश्रित अर्थव्यवस्था अर्थव्यवस्था में बाजार की अर्थव्यवस्था का पक्ष लिय गया। कई व्यवस्थाएं, जिन पर सरकार का पूरा नियंत्रण उसे निजी क्षेत्र की भागीदारी के लिए खोल दिया इसके कई उदाहरण हैं-दूरसंचार, ऊर्जा, सड़क, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस इत्यादि।

इसी समय में कुछ ऐस क्षेत्र रहे, जिन्हें सरकार के अधीन ही रखा गया। इन को सामूहिक रूप से सामाजिक क्षेत्र कहा जा सकता इनमें शामिल हैं-शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सफाई, पो सामाजिक सुरक्षा इत्यादि।

निष्कर्ष

मिश्रित अर्थव्यवस्था की विचारधारा मेनार्ड केंस की मशहूर किताब “The General Theory of Employment, Interest and Money ” में शामिल था। इस विचारधारा के अंतगर्त आर्थिक उन्मोखी की जिम्मेदारी राज्य और बाजार मिलकर उठाते है। जबकि भारतीय परिपेक्ष में अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों पर सरकार (जैसे परणाणु ,नाभकीय ,ऊर्जा , शिक्षा ,स्वास्थ इत्यादि ) का नियंत्रण और कुछ क्षेत्रों जैसे ,बैंक ,रेलवे ,सड़क इत्यादि को निजी हाथो में सौप दिया गया है।

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