अवमूल्यन किसे कहते हैं ?

भारतीय अर्थव्यवस्था मे अगर आप अवमूल्यन को समझना चाहते है तो पहले उत्पादन की अवधारणा क समझना होगा। यदि आपसे कहा जाए कि विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका की है तो इससे आप क्या समझेंगे?

निश्चय ही, हमें शंसय होगा कि किन मानदंडों के आधार पर ऐसा कहा जा रहा है भू-क्षेत्रफल, जनसंख्या अथवा अमेरिकी उत्पाद के आधार पर?हर अर्थव्यवस्था में उत्पादन के अंतर्गत इन सभी वस्तुओं को सम्मिलित किया जाता है।

जैसे कि कृषि को फसल, पशुधन, इस्पात, सीमेंट, मोटर गाड़ियाँ, साइकिलें, पावरोटी इत्यादि इसी प्रकार ‘सेवाएँ’ भी बैंकिंग, बीमा, आदि के माध्यम से प्रदान की जाती हैं। इन सभी उत्पाद और सेवाओं का स्थानीय मुद्रा यानी अमेरिकी डॉलर, भारतीय रुपया आदि के रूप में कुछ दाम होता है।

इस प्रकार उत्पाद का आशय वास्तव में सभी प्रकार की उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का किसी भी अर्थव्यवस्था में एक निश्चित अवधि के अंदर (तिमाही, छमाही या सालाना ) कुल वित्तीय मूल्य से है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि ‘उत्पाद’ का मतलब उन सभी उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं से है जिनका मुद्रा के द्वारा विनिमय किया जा सकता है।

उत्पादन को थोड़ा और गहराई से देखा जाये तो इसका अर्थ होता है की “अर्थव्यवस्था में उत्पादन के अंतगर्त सिर्फ अंतिम रूप से तैयार वस्तुओ और सेवाओ का एक निश्चित समय के अन्दर वस्तुओ और सेवाओ के मौद्रिक मूल्य को शामिल किया जाना चाहिए “

इसको एक उदहारण से जानने की कोशिश करते है पावरोटी के उत्पादन की प्रक्रिया में गेंहू को मिल में पिसाई की जाती है अतः इस पुरे उत्पाद की प्रक्रिया में सिर्फ पावरोटी का मौद्रिक मूल्य लिया जायेगा न की गेंहू और आटे की।

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अवमूल्यन की अवधारणा

देखिये अर्थव्यवस्था के उत्पादन की प्रक्रिया में कई factors होते है जैसे -जमीन,पूंजी ,मशीन ,कच्चा माल ,श्रम और बौद्धिक ज्ञान इन सभी को उत्पादन के कारक (factors) कहते है। अब अवमूल्यन को समझने की कोशिश करते है –

अर्थव्यवस्था के उत्पाद में मशीन एवं उपकरण भी होते है, जो कि हर साल इस्तेमाल कर लिये जाते हैं, शामिल हैं। इसे मशीनों का अवमूल्यन कहते हैं। इस प्रकार की मशीनों का उत्पादन प्रायः पुरानी मशीनों को बदलने के लिए किया जाता है और इन मशीनों के उत्पाद पर या अर्थव्यवस्था के पूँजी-स्टाक पर ज्यादा असर नहीं पड़ता।

मान लेते हैं कि एक अर्थव्यवस्था में मोटर कारों का उत्पादन हो रहा है तो वही कारों का अवमूल्यन भी होगा क्योंकि गाड़ियों के इस्तेमाल के निश्चित समय के बाद उनकी “उपयोग अवधि” (Shift Life) समाप्त हो जाती है।

उदाहरणस्वरूप एक तीन लाख की कार की उपयोग अवधि 10 वर्ष है। अवस्था में प्रतिवर्ष कार की अवमूल्यन राशि तीस हजार होगी। इस प्रकार यदि एक अर्थव्यवस्था अपने मशीनों के अवमूल्यन की परवाह नहीं करती है तो उसे “सकल” (Gross) अवधारणा कहते हैं। यदि इस अवमूल्यन को अपने खाते में गणना की जाती है तो उसे “शुद्ध” अवधारणा कहते हैं।

मुद्रा का अवमूल्यन क्या होता है ?

अर्थव्यवस्था में उत्पादन के अंतगर्त सिर्फ अंतिम रूप से तैयार वस्तुओ और सेवाओ का एक निश्चित समय के अन्दर वस्तुओ और सेवाओ के मौद्रिक मूल्य को शामिल किया जाता है अर्थात हम वस्तुओ और सेवाओं को उत्पाद तभी कहेंगे जब बाजार में इनका कोई मौद्रिक मूल्य होगा।

लेकिन वस्तुओ और सेवाओ के उत्पादन प्रक्रिया के दौरान जैसे वस्तु को एक जगह से दूसरे जगह ले जाते समय ,या वस्तुओ का उपयोग करते समय इन वस्तुओ और सेवाओ में घिसावट (टूटना -फूटना ) होती है जिसका आंकलन केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय करता है।

अतः इस घिसावट के कारण वस्तुओ सेवाओ के मौद्रिक मूल्य में कमी हो जाती है जिससे बाजार में घरेलु मुद्रा ,विदेशी मुद्रा के सामने कमजोर हो जाता है जिसको मुद्रा का अवमूल्यन कहते है।

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FAQs

Q.1 भारत में पहली बार अवमूल्यन कब हुआ?

भारत में पहली बार अवमूल्यन 1947 में हुआ था।

Q.2 भारत में कितनी बार अवमूल्यन हुआ?

1947 में भारत के आजादी के बाद भारतीय रुपए का तीन बार अवमूल्यन किया गया। यहां अमूल्य 1949, 1966 और 1991 में किया गया था। जिसमें उन्हें 1947 में विनिमय दर 1 USD = 1 INR था

Q.3 डॉलर का अवमूल्यन” वाक्यांश का क्या अर्थ है?

डॉलर का अवमूल्यन का अर्थ सोने (Gold) की आधिकारिक कीमत में बढ़ोतरी है।

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