मुद्रास्फीति का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (Beginner Guidance)

मुद्रास्फीति जिसको सामान्य भाषा में महंगाई कहते है ,जो अर्थव्यस्था मे सतत रूप से सभी वस्तुओ और सेवाओं के दाम में हुए बृद्धि को दर्शाता है। यहा ध्यान देने वाली बात यह है की किसी एकल वस्तु के दाम में हुए बृद्धि को मुद्रास्फीति नहीं कहते है।

अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति का बहुपक्षीय प्रभाव देखने को मिलता है जिसमे अर्थव्यवस्था का माइक्रो और मैक्रो दोनों स्तर शामिल होते है।

मुद्रास्फीति का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

ऐसी धारणा है कि हल्की मात्रा में मूल्य वृद्धि, जैसे ‘मंदस्फीति’ अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है, क्योंकि इससे उत्पादकों को और अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहन मिलता है, परिणामतः अधिक आय प्राप्त होती है। बढ़ी हुई आय से आम-जन, थोड़ी मूल्यवृद्धि को बर्दाश्त कर लेते हैं।

परंतु, यदि मूल्य वृद्धि की दर, आय में वृद्धि की दर से ज्यादा है तो चोट पहुंचाती है, विशेषकर गरीबों को जो मुद्रास्फीति से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। उपभोग वाली आवश्यक वस्तुएं बहुसंख्यक आबादी की पहुंच के बाहर हो जाती हैं।अपने जीवन स्तर को बनाये रखने के लिए लोगों को, अपनो बचत का ज्यादा हिस्सा, मुद्रास्फीति काम में खर्च करना पड़ता है। अतः लम्बे समय तक चलने वाली मुद्रास्फीति, अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर सकती है।

अतः इस प्रकार मुद्रास्फीति यदि कम है तो यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक होता जबकि मुद्रास्फीति क्रय शक्ति से ज्यादा हो जाये और लम्बे समय तक देश के अन्दर बना रह जाये तो यह निश्चित ही देश की अर्थव्यवस्था के लिए खरता होता है।

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मुद्रास्फीति के अन्य प्रभाव

ऋणदाता और देनदार पर प्रभाव

मुद्रास्फीति के दौरान उधार देने वाले को नुकसान जबकि उधार लेने वाले को फायदा होता है। अवस्फीति के समय में इसका बिल्कुल विपरीत होता है।

कुल मांग पर प्रभाव

अर्थव्यस्था में मुद्रास्फीति का बढ़ना मतलब की कुल मांग के बढ़ने का संकेत देता है अंततः जो कम आपूर्ति और उपभोक्ताओ के बीच उच्च क्रय शक्ति का भी संकेत देता है।

निवेश पर प्रभाव

अल्पावधि में मुद्रास्फीति के बढ़ने से अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ता है इसके पीछे दो कारण हो सकते है –

  • यदि मुद्रास्फीति बहुत अधिक हो (जिसे उच्च मुद्रास्फीति कहते है) ,तो इसका मतलब की देश के अंदर वस्तुओ और सेवाओं का मांग भी उच्च होंगे जिससे कारोबारियों के लिए उच्च मांग को संतुलित करने के लिए अर्थात उत्पादन का विस्तार करने के लिए निवेश को बढ़ाना होता है।
  • मुद्रास्फीति जितनी ज्यादा होगी कर्ज का लागत उतना ही कम होगा और निवेश उतना ही ज्यादा।

आय पर प्रभाव

जब महंगाई बढ़ती है तो वस्तुओ की कीमतें भी बढ़ती हैं. इससे लोगों की क्रय शक्ति कम हो सकती है क्योंकि उनके वेतन और बचत का मूल्य घट जाता है। लोगों को अपने खर्चों और बचत को समायोजित करने की आवश्यकता हो सकती है।

यदि आय मुद्रास्फीति की तुलना में धीमी दर से बढ़ रही है, तो यह वित्तीय दबाव पैदा कर सकता है। हालाँकि, अगर आय मुद्रास्फीति की तुलना में तेज़ दर से बढ़ रही है, तो लोगों की वित्तीय स्थिति में सुधार हो सकता है। इसलिए, आय और मुद्रास्फीति के बीच संबंध को समझना महत्वपूर्ण है।

मुद्रास्फीति का व्यक्तियों और संस्थाओ की आय पर एक जैसा प्रभाव डालता है ,मुद्रास्फीति मे बृद्धि के दौरान आय का नॉमिनल वैल्यू में इजाफा जबकि वास्तविक वैल्यू उतनी ही रहती है।

बचत पर प्रभाव

अल्प मुद्रास्फीति के दौरान बचत बढ़ जाता है क्योकि मुद्रास्फीति के समय में रुपया अपना मूल्य खो देता देता इस लिए लोग cash को अपने पास रखने के बजाय बैंक में ज्यादा सुरक्षित महसूस करते है जिससे बचत बढ़ जाता है। जबकि लम्बी मुद्रास्फीति बचत दर को कमजोर कर देती है।

खर्च पर प्रभाव

मुद्रास्फीति का हमारे खर्च पर प्रभाव पढ़ता है क्योकि मुद्रास्फीति के दौरान वस्तुओ और सेवाओं का दाम बढ़ जाता है अतः इस स्थति को संतुलित करने के लिए उपभोग पर होने वाले खर्च को कम कर दिया जाता है।

मजदूरी पर प्रभाव

मुद्रास्फीति की वजह से मजदूरी की नॉमिनल (फेस) वैल्यू बढ़ जाती है जबकि इसकी रीयल वैल्यू (वास्तविक मूल्य) गिर जाती है। यही वजह है कि मुद्रास्फीति का क्रय शक्ति और मजदूरी पाने वाले कर्मचारी के जीवन स्तर पर नकारात्मक प्रभाव होता है।

स्वरोजगार पर (On Self-employed)

अल्पावधि में स्वरोजगार करने वालों पर मुद्रास्फीति का कोई असर नहीं पड़ता। लेकिन लंबे समय में उन पर भी इसका असर पड़ता है क्योंकि पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है।

निष्कर्ष

1980 के दशक से मुद्रास्फीति किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए स्वस्थ होने का संकेत देता है लेकिन इसके लिए मुद्रास्फीति का एक खास स्तर होना चाहिए ,जिसको सामान्यतः रेंज कहते है। भारत के लिए यह रेंज (4-2) % से लगाए (4 +2) % होता है.

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