हरित क्रांति क्या है? हरित क्रांति की शुरुआत और जनक, उद्देश्य , लाभ , विफलता

हरित क्रांति(Green Revolution) के उद्देश्य ,लाभ ,महत्त्व को जानने से पहले हमे भारत की Food Philosophy को जानना बेहतर होगा। भारत की आजादी 1947 से लगाए अगले तीन दशक (1947 -1980) भारत की सबसे मुख्य चुनौतियो में से एक चुनौती खाद्य पदार्थो तक आम जनता की पहुंच थी, जिसको Food Philosophy के अन्तर्गत पहला stage माना जाता है।

इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार के पास दो विकल्प थे जिसमे पहला विकल्प था बाहर देशो से खाद्य पदार्थो का आयात किया जाये ये संभव तो था लेकिन यह विकल्प उस वक्त के नजरिये से सर्वव्यापी नहीं था साथ ही साथ यह विकल्प अल्पावधि था।

जबकि भारत के लिए दूसरा और टिकाऊ विकल्प खाद्यान पदार्थो का Surplus उत्पादन था। इसी विकल्प के साथ 1960 के दशक में हरित क्रांति आया जो काफी हद तक उम्मीदों पर खरा उतरा।

Food Philosophy का पहला Stage सफल रहा जबकि दूसरे stage में सबसे बड़ी समस्या सामने आयी वो था खाद्य पदार्थो तक आर्थिक पहुँच क्योकि उस वक्त हरित क्रांति के लिए बीज का दाम काफी महंगा था जिस कारण हरित क्रांति सबके लिए योग्य नहीं था।

साल 2000 तक अब भुखमरी बढ़ने लगी और भारत में हरित क्रांति का मजाक बनने लगा तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा की काम के बदले आनाज देने जैसे योजना पर ध्यान दिया जाये तब सरकार ने एक योजना की शुरुआत की जिसको राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (काम के बदले आनाज ) कहते हैं। और देखते -देखते भारत 2002 में विश्व का सातवा सबसे बड़ा गेंहू निर्यातक देश बन गया।

अब भारत Food Philosophy के पहले stage (खाद्य पदार्थो तक भौतिक पहुँच ) और दूसरा stage (खाद्य पदार्थो तक आर्थिक पहुँच) को हासिल करके तीसरे stage पर जाता है। भारत Food Philosophy के तीसरे stage Ecosystem और Bio-Diversity जैसे समस्या से झूझने लगा क्योकि WHO का मानना था की धान की खेती से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है जो Global Warming को बढ़ाने के अहम् भूमिका निभाता है।

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हरित क्रांति क्या है?/ Green Revolution

1960 के दशक में कृषि में कुछ नए तकनीकों की शुरुआत की गयी जिसको विश्व भर में हरित क्रांति के नाम से जाना जाता हैं। इन तकनीकों का प्रयोग पहले गेंहू और फिर धान के लिए किया गया जिससे उत्पादक स्तर में 250% तक की वृद्धि हुई।

हरित क्रांति (Green Revolution) तकनीक के पीछे का सबसे बड़ा हाथ जर्मन कृषि वैज्ञानिक नार्मल बोरलॉग का था जिनको हरित क्रांति के जनक तौर पर देखा जाता है जबकि भारत में हरित क्रांति के जनक M.S Swami Nathan को माना जाता है।

हरित क्रांति (Green Revolution) के अवयव/ घटक

ये जानना बहुत जरुरी है की हरित क्रांति में कौन कौन से अवयव शामिल शामिल थे जो सामान्य कृषि से अलग बनाता था –

उन्नत किस्म के बीज (HYV)

उन्नत किस्म के बीज को सामान्यतः बौना किस्म के बीज कहते है , क्योकि इन बीजो से बने पौधे की लम्बाई सामान्य पौधे से छोटा होता था और सबसे महत्वपूर्ण बात की उन्नत किस्म के बीज प्रकाश संश्लेषण रहित थे अर्थात ये अपने विकास और उपज के लिए सूर्य की रौशनी पर निर्भर नहीं करते थे।

रासायनिक उर्वरक

उन्नत किस्म के बीज (HYV) में विकास और उपज तभी सम्भव था जिसमे उचित मात्रा में रासायनिक उर्वरक मिल सके। यहा ध्यान देना जरुरी है ,उन्नत किस्म के बीज (HYV) के उपज और विकास के लिए पाराम्परिक पोषण (गोबर का खाद)पर्याप्त नहीं था इसके लिए नाइट्रोजन ,पोटेशियम , फास्पफेट ,पोटाश इत्यादि का भरपूर मात्रा में आवश्यकता होती थी।

सिचाई

रासायनिक उर्वरक को घुलने और फसलों के नियमित विकास के लिए समयानुसार सिचाई आवश्यक था ,एक रिपोर्ट के अनुसार हरित क्रांति में 1Kg चावल उत्पादन के लिए 5 टन पानी लगता है।

रासायनिक कीटनाशक और खरपतवारनाशक केमिकल

उन्नत किस्म के बीज (HYV) में स्थानीय कीड़ो और अनावशयक खरपतवार से बचाने के लिए रासायनिक कीटनाशक और खरपतवार नाशक केमिकल का उपयोग जरुरी था।

हरित क्रांति (Green Revolution) के प्रभाव

हरित क्रांति का प्रभाव देश के अंदर सकारात्मक और नकारात्कम दोनों प्रभाव देखने को मिलते है। सकारात्मक प्रभाव की बात किया जाये तो अर्थव्यवस्था में उत्पादकता बढ़ गयी जिससे देश के सामने जो खाद्य पदार्थो तक पहुँच की समस्या समाप्त हो गयी और अंततः भारत गेंहू और चावल के मामलो में सबसे अव्वल उत्पादक देश बन गया।

परन्तु इसका नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिला अगर सामाजिक -आर्थिक प्रभाव की बात करे तो वो राज्य जो हरित क्रांति के लिए उपयोगी थे जैसे ( पंजाब और हरियाणा) आर्थिक रूप से और सम्पन हो गए जबकि वो राज्य जो हरित क्रांति के लिए उपयोगी नहीं थे वहा के किसान अत्यंत गरीब जो गए।

हरित क्रांति का पारिस्थितिकीय तंत्र पर भी काफी बुरा प्रभाव पढ़ा जैसे गंभीर पारिस्थितिकीय तंत्र पर संकट ,मृदा की उर्वरकता में कमी ,फसल चक्र में बदलाव और खाद्य पदार्थो में विष का स्तर बढ़ना इत्यादि।

निष्कर्ष

हरित क्रांति आने के पीछे का सबसे बड़ा वजह भारत में खाद्य पदार्थो का आम जनता तक पहुँच थी। हालाँकि भारत इस समस्या से जल्द ही निदान पा लिया और 2002 तक विश्व में गेंहू का 7 वा सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया साथ ही साथ हरित क्रांति वाले राज्य आर्थिक रूप से काफी मजबूत भी हो गए लेकिन यही हरित क्रांति अंतरराज्यीय सामाजिक -आर्थिक असमानता को भी बढ़ाने में योगदान दिया।

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FAQs

Q.1 हरित क्रांति का जनक कौन है?

हरित क्रांति के जनक  नॉर्मन बोरलॉग (Norman Borlaug) द्वारा शुरू की गई थी। इस क्रांति में उनकी भूमिका के कारण उन्हें “हरित क्रांति के जनक” (Father of Green Revolution in Hindi) के रूप में जाना जाता है।

Q.2 हरित क्रांति के गुण और दोष क्या हैं?

हरित क्रांति के प्रमुख फायदे और नुकसान में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी, खाद्य उत्पादन में वृद्धि और खाद्य उत्पादों की लागत में कमी शामिल है। इसके विपरीत, नुकसान में वनों की कटाई, कीटनाशकों के कारण स्वास्थ्य समस्याएं, मिट्टी और पोषक तत्वों की कमी आदि शामिल हैं।

Q.3 हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य क्या है?

हरित क्रांति का मुख्य उद्देश्य खाद्यानो तक भौतिक पहुँच को बनाना ,साथ ही साथ उत्पादन में वृद्धि करना था।

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