संधारित्र क्या है-संधारित्र की धारिता ,सिद्धांत ,उपयोग और चित्र (class 12th)

संधारित्र जिसको English में “Capacitor” जो सामान्यतः हमारे दैनिक जीवन में आवेश की आपूर्ति करता हैं अतः संधारित्र एक ऐसा यंत्र या समायोजन होता है जिसमे चालक के आकार में बिना परिवर्तन किये आवेश की पर्याप्त मात्रा को संचित (Stored ) करता हैं ,ऐसे सायोजन को संधारित्र कहते हैं।

यहा यह जानना जरुरी है की चालक के आकार में बिना परिवर्तन का क्या अर्थ हुआ। देखिये चालक की आकृति अलग अलग हो सकती है कुछ चालक, गोलीय तो कुछ चालक समतलीय होते है जबकि कुछ चालक बेलनाकृत।इनके आकार में बिना परिवर्तन को अर्थ हुआ की गोलीय चालक की त्रिज्या ,समतलीय चालक की लम्बाई और चौड़ाई ,बेलनाकार चालक की आधार की त्रिया और उचाई में कोई परिवर्तन नहीं किया जाये।

ध्यान दीजिये किसी भी चालक की धारिता (आवेश ग्रहण करने की अधिकतम क्षमता ) चालक आकार ,चालक के माध्यम की उपस्थिति पर निर्भर करता हैं ,अर्थात चालक की धारिता को अगर बढ़ाना हो तो चालक के आकार को बढ़ाना होगा ,परन्तु संधारित्र में हम चालक के आकार बिना परिवर्तित किये उस चालक पर आवेश की मात्रा को संचित करते हैं।

संधारित का सिद्धांत और धारिता

जैसा की हमने ऊपर यह पढ़ा की संधारित एक प्रकार का संयोजन (यंत्र ) होता है जो चालक के आकार में बिना परिवर्तन किये उस पर आवेश की पर्याप्त मात्रा संचित करता है ,लेकिन प्रश्न यह उठता है यह कैसे सम्भव हैं ? इस प्रश्न का उत्तर संधारित्र के सिद्धांत में छिपा हुआ हुआ हैं।

संधारित्र के सिद्धांत के अन्तगर्त जिस आवेशित चालक पर आवेश की मात्रा को बढ़ाना होता है उस आवेशित चालक के समीप कोई दूसरी अनावेशित चालक (जिस पर आवेश शून्य हो ) रख देते है।

अब हम सभी लोगो को पता है आवेशित चालक पर पहले से ही आवेश की मात्रा उपस्थित होती है जिस कारण आवेशित चालक का विभव (V) अनावेशित चालक (आवेश शून्य होने के वजह से विभव शून्य होगा ) के विभव से उच्च होगा।

चुकी विभव आवेश के प्रवाह की निर्धारण करता हैं अतः आवेश आवेशित चालक से अनावेशित चालक के तरफ प्रवाह करेगा जिससे आवेशित चालक का विभव गिर जायेगा जिस कारण आवेशित चालक की धारिता बढ़ जाएगी।

संधारित्र का सिद्धांत,धारिता और कार्य विधि

संधारित्र का सिद्धांत,धारिता और कार्य विधि
संधारित्र का सिद्धांत,धारिता और कार्य विधि

मान लीजिये कोई आवेशित चालक A जिसके सम्पूर्ण पृष्ठ पर +Q आवेश उपस्थित हैं ,इसी चालक के समीप हम सामान आकार का कोई अन्य अनावेशित चालक(B)को रखते हैं तब विधुत प्रेरण की घटना से अनावेशित चालक के आंतरिक पृष्ठ पर -Q तथा बाहरी पृष्ठ पर +Q आवेश उत्पन हो जाता है।

यहा ध्यान देने वाली बात है -“अनावेशित चालक(B) का भीतरी पृष्ठ जिस पर -Q आवेश है जो आवेशित चालक (A) के विभव में कमी करता है जबकि अनावेशित चालक(B) का बाहरी पृष्ठ जिस पर +Q आवेश है ,आवेशित चालक (A) के विभव में बृद्धि करता है”।

अतः संधारित्र के धारिता के सूत्र से –

C =\frac {Q }{V }

इस सूत्र से यह निष्कर्ष निकलता है की जब विभव कम होगा तो धारिता बढ़ जाएगी (अनावेशित चालक(B) का भीतरी पृष्ठ जिस पर -Q आवेश के कारण ) और जब विभव ज्यादा होगा तो धारिता कम हो जाएगी (अनावेशित चालक(B) का बाहरी पृष्ठ जिस पर +Q आवेश के कारण) |

अब चुकी संधारित्र का उपयोग हम सभी लोग आवेश की अत्यधिक मात्रा पाने के लिए करते हैं इस लिए अनावेशित चालक के बाहरी पृष्ठ पर उपस्थित आवेश +Q की कोई आवश्यकता नहीं होती हैं अतः अनावेशित चालक (B) के बाहरी पृष्ठ(+Q) को पृथ्वी से जोड़ देने से, +Q आवेश पृथ्वी के इलेक्ट्रान (ऋणात्मक ) द्वारा शून्य कर दिया जाता है।

जबकि अनावेशित चालक (B) का भीतरी सतह (-Q) आवेशित चालक (A) के समीप होने के वजह से विधुत प्रेरण द्वारा आवेशित चालक(A) के विभव को कम कर देता है जिस कारण आवेशित चालक की धारिता बढ़ जाती है।

समान्तर प्लेट संधारित्र की धारिता

समान्तर प्लेट संधारित्र में धातु की दो सामान आकृति और सामान क्षेत्रफल की प्लेटो को परस्पर एक दूसरे के अल्प दुरी पर रखते है। तब समान्तर प्लेट संधारित्र की धारिता –

C=\frac{A \epsilon_०  }{d}--(1)

यहा A प्लेटो का क्षेत्रफल ,d प्लेटो के बीच की दुरी है। यदि इन प्लेटो के बीच कोई पूर्ण रूप से पदार्थ भर दे जिसका परावैद्युतांक K हो तब समान्तर प्लेट संधारित्र की धारिता –

C_० =\frac{K A \epsilon_०  }{d}--(2)

संधारित्रों का संयोजन

संधारित्रों का दो प्रकार से संयोजन होता है-

  • समान्तर क्रम का संयोजन
  • श्रेणी क्रम का संयोजन

समान्तर क्रम का संयोजन

समान्तर क्रम के संयोजन में सभी संधारित्रों का धनात्मक सिरा एक बिंदु से जबकि ऋणात्मक सिरा किसी दूसरे बिंदु से जुड़ा होता हैं। इस संयोजन की तुल्य धारिता –

C=C_1+C_2+C_3

श्रेणी क्रम का संयोजन

श्रेणी क्रम के संयोजन में पहले संधारित्र का ऋणात्मक सिरा दूसरे संधारित्र के धनात्मक सिरा से ,दूसरे का ऋणात्मक सिरा तीसरे संधारित्र के धनात्मक सिरा से जुड़ा होता हैं। अतः इस संयोजन की धारिता –

\frac{1}{C}=\frac{1}{C_1}+\frac{1}{C_2}+\frac{1}{C_3}

संधारित्र का उपयोग

संधारित्र का उपयोग का उपयोग मुख्यतः परिपथ में आवेश भण्डारण तथा ऊर्जा भण्डारण के लिए किया जाता है। इसके लिए संधारित्रों को समान्तर और श्रेणी क्रम मे जोड़ा जाता है। कुछ मुख्य उपयोग और भी है जैसे –

  • शक्ति गुणांक (पॉवर फैक्टर) को बेहतर बनाने के लिये
  • विभिन्न विद्युत फिल्टरों में
  • वैधुत परिपथों में समय-सम्बन्धी परिपथ (timing circuit) बनाने के लिये
  • पल्स-पॉवर एवं शस्त्र निर्माण
  • सेंसर के रूप में (जैसे CVT = कैपेसिटिव वोल्टेज ट्रांसफॉर्मर)

निष्कर्ष

संधारित्र एक ऐसा यंत्र या समायोजन होता है जिसमे चालक के आकार में बिना परिवर्तन किये आवेश की पर्याप्त मात्रा को संचित (Stored ) करता हैं ,ऐसे सायोजन को संधारित्र कहते हैं।

संधारित्र से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न | FAQs

Q.1-संधारित्र का क्या काम है?

वैधुत संधारित्र का उपयोग वैधुत आवेश, अथवा स्थिर वैधुत उर्जा, का संचय करने के लिए तथा वैधुत फिल्टर, स्नबर (शक्ति इलेक्ट्रॉनिकी) आदि में होता है।

Q.2-संधारित्र किससे बनता है?

संधारित्र सामान्यतः धातुओ से मिलकर बनता है अर्थात संधारित्र एक प्रकार का चालक होता है।

Q.3 संधारित्र के अंदर कौन सी धातु होती है?

संधारित्र आम तौर पर तीन अलग-अलग पदार्थो में से एक से बने होते हैं जिसमे  एल्यूमीनियम, टैंटलम और नाइओबियम ।

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