दर्पण किसे कहते हैं-अवतल ,उत्तल और समतल दर्पण की परिभाषा ,चित्र और प्रतिबिम्ब बनने के नियम (2024)

दर्पण का अध्याय Exam और व्यवहारिक जीवन के नजरिए से काफी महत्वपूर्ण होता हैं। अक्सर हम लोग अपने व्यवहारिक जीवन में अलग-अलग प्रकार के दर्पण का उपयोग करते है तो आइये आज के इस लेख में हम लोग “दर्पण किसे कहते हैं-अवतल ,उत्तल और समतल दर्पण की परिभाषा ,चित्र और प्रतिबिम्ब बनने के नियम (2024)” को जानने और समझने की कोशिश करते हैं।

दर्पण किसे कहते हैं ?

“दर्पण वह निकाय होता हैं,जिसे एक पृष्ठ पर लाल आक्साइड का लेप करके दूसरे पृष्ठ को परावर्तक बना दिया जाता हैं।

जबकि परावर्तक पृष्ठ वह पृष्ठ होता हैं जिस पर प्रकाश की किरणें आपतित होती हैं।

दर्पण के प्रकार

दर्पण को उसकी आकृति के आधार पर दो प्रकारो में बाँटा गया हैं –

  • समतल दर्पण
  • गोलीय दर्पण

समतल दर्पण|समतल दर्पण किसे कहते हैं ?

दर्पण का वह प्रकार जिसका परावर्तक पृष्ठ समतल हो,समतल दर्पण कहलाता हैं। समतल दर्पण व्यावहारिक जीवन में उपयोग होने वाले सबसे महत्वपूर्ण दर्पण में से एक हैं। अतः समतल दर्पण के विशेषताओ को जान लेना जरुरी होता हैं।

समतल दर्पण की विशेषताये-

  • समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब सदैव आभासी तथा सीधा होता है।
  • समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिम्ब का आकार वस्तु के आकार के बराबर होता है।
  • प्रतिबिम्ब दर्पण से उतनी ही दूरी पीछे बनता है, जितनी कि वस्तु दर्पण के आगे होती है।
  • वस्तु तथा प्रतिबिम्ब को मिलाने वाली रेखा समतल दर्पण पर लम्ब होती है।

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समतल दर्पण द्वारा प्रतिबिम्ब बनने की स्थिति-

समतल दर्पण से प्रतिबिम्ब बनाने के लिए कुछ स्थितियों को देखना होता हैं –

(1)यदि दो समतल दर्पणों के बीच का कोण θ हो,तथा इन समतल दर्पणों से बने प्रतिबिम्बों की संख्या n तब –

n =[\frac {360^० }{θ}~~ , \frac {360^० }{θ}-1 ]

यहाँ से दो स्थिति उत्पन होती हैं-

  • (1) यदि θ सम संख्या हो तब प्रतिबिम्बों की सांख्य (n)=(360/θ-1) होगी।
  • (2) (1) यदि θ बिषम संख्या हो तब प्रतिबिम्बों की सांख्य (n)=(360/θ) होगी।

इसको हम उदहारण से समझने की कोशिश करते हैं –

1-दो समतल दर्पण परस्पर 120° का कोण बनाते हुए स्थित हैं। उनके ठीक बीच में, एक वस्तु स्थित है। वस्तु के प्राप्त प्रतिबिम्बों की संख्या बताइए।

यह दो समतल दर्पणों की बीच का कोण 120° दिया गया है जो की एक सम संख्या हैं अतः-

प्रतिबिम्बों की संख्या(n)=(360/120°-1)=(3-1 )=2

अन्य स्थिति-

  • θ कोण पर झुके दो समतल दर्पणों द्वारा उत्पन्न विचलन, δ-360°-2θ
  • h ऊँचाई वाले व्यक्ति को अपना पूर्ण प्रतिबिम्ब देखने के लिए, आवश्यक समतल दर्पण की न्यूनतम ऊँचाई h/2 होनी चाहिए।
  • एक व्यक्ति एक कमरे के ठीक बीच में खड़ा होकर अपने पीछे की सम्पूर्ण दीवार का प्रतिबिम्ब सामने की दीवार में लगे समतल दर्पण में देखना चाहे तो दर्पण का न्यूनतम आकार दीवार के आकार का एक-तिहाई होना चाहिए।
  • जब समतल दर्पण v चाल से स्थिर व्यक्ति की ओर गति करता है, तो प्रतिबिम्ब 2v चाल से व्यक्ति की ओर गति करता हुआ प्रतीत होता है।
  • जब कोई व्यक्ति समतल दर्पण की ओर v चाल से चलता है, तो उसे दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब 2v चाल से गति करता हुआ प्रतीत होता है।
  • जब समतल दर्पण के सामने रखी वस्तु स्थिर हो तथा दर्पण वस्तु की ओर x दूरी चलता है, तो उसका प्रतिबिम्ब भी x दूरी पर विस्थापित हो जाता है।

गोलीय दर्पण|गोलीय दर्पण किसे कहते हैं ?

गोलीय दर्पण काँच के खोखले गोले से बनाया जाता हैं। इस खोखले गोले के किसी एक पृष्ठ पर लाल आक्साइड से पालिश कर दिया जाता हैं जबकि दूसरे पृष्ठ को परावर्तक पृष्ठ बना दिया जाता हैं। अतः हम कह सकते है यदि परावर्तक पृष्ठ गोलीय हो तो उसे गोलीय दर्पण कहते हैं।

गोलीय दर्पण के प्रकार

  • अवतल दर्पण
  • उत्तल दर्पण

अवतल दर्पण-परिभाषा ,चित्र

“वह गोलीय दर्पण जिसमे परावर्तक पृष्ठ अंदर की ओर दबा होता हैं ,अवतल दर्पण कहलाता हैं।

अवतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब वास्तविक होता हैं। अवतल दर्पणअनंत से आने वाले किरणों को सिकोड़ने का काम करता हैं इस लिए ऐसे दर्पण को अभिसारी दर्पण भी कहते हैं”

उत्तल दर्पण-परिभाषा ,चित्र

“वह गोलीय दर्पण जिसमे परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर उभरा होता हैं ,उत्तल दर्पण कहलाता हैं।

उत्तल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब आभासी होता हैं। उत्तल दर्पणअनंत से आने वाले किरणों को बिखेरने का काम करता हैं इस लिए ऐसे दर्पण को अपसारी दर्पण भी कहते हैं”

गोलीय दर्पण से सम्बंधित परिभाषा

  • दर्पण का ध्रुव(P)- गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के मध्य बिंदु को दर्पण का ध्रुव(P) कहते हैं।
  • वक्रता केंद्र (C)- गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ जिस खोखले गोले का केंद्र होता हैं उसे वक्रता केंद्र (C) कहते हैं।
  • वक्रता त्रिज्या (R)-दर्पण के ध्रुव (P) और दर्पण के वक्रता केंद्र (C) के बीच के दुरी को वक्रता त्रिज्या (R) कहते हैं।
  • मुख्य फोकस(F) –गोलीय दर्पण के मुख्य अक्ष के समान्तर आपने वाली प्रकाश की किरणे परावर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष को जिस बिन्दु पर काटती हैं (अवतल) या कटती हुई प्रतीत होती हैं (उत्तल) ,उस दर्पण का मुख्य फोकस(F) कहलाता हैं।
  • फोकस दुरी(f)-गोलीय दर्पण के ध्रुव(P) तथा मुख्य फोकस(F) के बीच की दुरी को फोकस दुरी(f) कहते हैं।

वक्रता त्रिज्या (R) और फोकस दुरी(f) के बीच सम्बन्ध

वक्रता त्रिज्या (R) और फोकस दुरी(f) के बीच सम्बन्ध-

f =\frac {R }{2 }

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संयुग्मी फोकस

दर्पण के मुख्य अक्ष पर स्थित उन दो बिन्दुओ को संयुग्मी फोकस कहा जाता हैं जिसके लिए किसी एक बिंदु पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब दूसरे बिंदु पर बनता जो तथा दूसरे बिंदु पर रखे वस्तु का प्रीतिबिम्ब पहले बिन्दु पर बनता हैं ,ऐसे बिंदु एक दूसरे के संयुग्मी फोकस कहलाते हैं। संयुग्मी फोकस की स्थिति केवल अवतल दर्पण में ही बनता हैं।

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