आवेश क्या होता है|avesh kya hota hain

आवेश किसी पदार्थ का वह भौतिक गुण होता है जिसके कारण उसे विद्युत तथा चुंबकीय प्रभाव उत्पन्न होते हैं। विद्युत आवेश कहलाता है।”

दोस्तों क्या आप जानना चाहते है avesh kya hota hain, तो आज हम लोग इस पोस्ट के माध्यम से आवेश के बारे मे जानेंगे। साथ ही साथ आवेश से सम्बंधित सभी बिन्दुओं जैसे आवेश की परिभाषा, आवेश के प्रकार, आवेश के गुणधर्म इत्यादि पर चर्चा किया जाएगा।

आवेश की मुलभुत अविधारणा |avesh ki mulbhut avidharna

देखिए आवेश की अगर मूलभूत अविधारण को आप समझेंगे तो आपको पता चलेगा की आवेश की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। तो अगर आपको आवेश को समझना है तो आवेश की अविधारणा को समझना होगा तो आइए आवेश की अविधारणा को समझने की कोशिश करते हैं।

आवेश को परिभाषित करने के लिए मुख्यतः दो विधि होती है-

  • लेक्ट्रॉन विधि
  • घर्षण विधि

इलेक्ट्रॉन विधि

इस विधि के अनुसार- इलेक्ट्रोनो के प्रवाह को आवेश कहते है। जबकि हम लोगो के लिए जानना दिलचस्प होगा कि इलेक्ट्रॉन आखिर प्रवाह कैसे करता होगा।तो आइए हम ये जानने की कोशिश करते है की इलेक्ट्रोनों का प्रवाह कैसे होता है।

अगर आपसे ये प्रश्न पूछा जाए कि किसी पदार्थ का निर्माण कैसे होता है ,तो निश्चित ही आपका उत्तर होगा की पदार्थ अणु और परमाणु से मिलकर बना होता हैं।

और इसी क्रम में परमाणु का निर्माण नाभिक और इलेक्ट्रॉन से जबकि नाभिक का निर्माण प्रोटॉन और न्यूट्रोन से होता है। अंततः हम ये कह सकते है की पदार्थ का निर्माण इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से मिलकर होता है जिसे मूल कण कहते हैं।

नीचे दिए गए चित्र को ध्यान से निरीक्षण कीजिए आप पाएंगे कि की इलेक्ट्रॉन अपने अलग अलग कक्ष में नाभिक के चारो तरफ चक्कर लगा रहा है। अर्थात नाभिक से पहले कक्ष की दूरी कम जबकि अंतिम कक्ष की दूरी ज्यादा है

अतः नाभिक पहले कक्ष पर तीव्र नाभिकीय बल लगायेगा जबकि अंतिम कक्ष पर कमजोर नाभिकीय बल लगायेगा। इस प्रकार अगर पदार्थ को रगड़ दिया जाए तो अंतिम कक्ष के इलेक्ट्रॉन अपने कक्ष को छोड़कर अन्य कक्ष में प्रवेश कर जाएगा जिसको इलेक्ट्रोनों का प्रवाह कहते है और इस प्रवाह को आवेश कहते हैं।

घर्षण विधि

बचपन में खासकर सभी लोगो ने पैन को अपने सर के बालो पर रगड़ा होगा और देखा होगा की पैन हल्के हल्के कण को अपने तरफ खींचता होगा,यही क्रिया आवेशन होती है अर्थात जब दो वस्तुओं को आपस में रगड़ा जाता है तो दोनो वस्तु के अंदर हल्के हल्के कण को खींचने की प्रवृत्ति आ जाती है जिसे पदार्थों का विधुतमय होना कहते है और इस घटना को आवेश कहते है।

आवेश के प्रकार-

आवेश मुख्यत दो प्रकार के होते है-

  • धनात्मक
  • ऋणात्मक

महत्वपूर्ण बिंदु –

  • सजातीय आवेश( धनात्मक,धनात्मक और ऋणात्मक,ऋणात्मक ) एक दूसरे को प्रतिकर्षण करते हैं
  • बिजातिय आवेश( धनात्मक,ऋणात्मक और ऋणात्मक,धनात्मक) एक दूसरे को आकर्षण करते हैं|

आवेश का मात्रक और विमीय सूत्र-

आवेश का S.I पद्धति में मात्रक कूलाम होता है जबकि C.G.S पद्धति में मात्रक स्टेट कूलाम होता है।

आवेश के गुणधर्म

आवेश संरक्षण का सिद्धांत-

आवेश का संरक्षण दो शब्दों से मिलकर बना है (Conservation and charge) पहला शब्द है संरक्षण, जिसका सामान्य अर्थ है बचाना। यदि इन शब्दों की सरलता को समझा जाए तो इसका अर्थ होगा आवेश को बचाना या संरक्षित करना, अर्थात हम कह सकते हैं कि एक पृथक प्रणाली का आवेश संरक्षित है

यहां आवेशित कणों को बनाना या नष्ट करना संभव है, लेकिन शुद्ध आवेश को बनाना या नष्ट करना संभव नहीं है

आवेश संरक्षण सिद्धांत को एक उदाहरण द्वारा समझने का प्रयास करते है, जब एक प्रोटॉन और एक इलेक्ट्रान एक दूसरे के साथ क्रिया करते है तो दो गामा कण का निर्माण होता है ।अर्थात देखा जाए तो क्रिया करने से पहले का कुल आवेश (शून्य) तथा क्रिया करने के बाद का कुल आवेश (शून्य) बराबर है यही आवेश संरक्षण का नियम कहलाता हैं।

p^+ +e^- =\gamma +\gamma

विद्युत आवेशो की योज्यता का सिद्धांत

किसी निकाय का कूल विद्युत आवेश उस निकाय में उपस्थित सभी अवेशो के बिजगणितीय योग के बराबर होता है। अर्थात-

Q_{net}=q_{1}\pm q_{2}\pm q_{3}..........\pm q_{n}

आवेश का क्वांटीकरण

मूल आवेश प्रकृति का सबसे न्यूनतम मान होता है इसके सामान्यत e से व्यक्त करते है।जबकि किसी पदार्थ पर उपस्थित आवेश पदार्थ में निहित मूल आवेश का पूर्ण गुणज होता है ।

आवेश का क्वांटीकरण

q=\pm ne

मूल आवेश का मान

e=1.6\times10^{-19} ~~~कूलाम

आवेशन की विधियां

  • चालन विधि
  • प्रेरण विधि
  • घर्षण विधि

चालन विधि

यदि किसी आवेशित चालक को किसी अन्य अनावेशित चालक से स्पर्श कराए तो अनावेशित चालक पर भी उसी प्रकृति का आवेश उत्पन्न हो जाता है। अर्थात आवेश की प्रकृति नही बदलती परंतु आवेश की मात्रा आधी (Half) हो जाती है ।

प्रेरण विधि

यदि किसी आवेशित वस्तु के निकट कोई अन्य अनावेशित वस्तु रख दी जाए तो अनावेशित वस्तु के निकटतम पृष्ठ पर विपरीत आवेश उत्पन्न हो जाता है। इस विधि में आवेश की प्रकृति तो बदल जाती है लेकिन आवेश की मात्रा नियत रहती है।

घर्षण विधि

जब दो वस्तुओ को आपस में रगड़ा जाता है तो उनके बीच इलेक्ट्रानो के स्थानांतरण द्वारा वस्तुओं पर आवेश उत्पन्न हो जाता है। इस विधि को घर्षण विधि कहते हैं।

निष्कर्ष

इस तरह हमने देखा की आवेश की कोई निश्चित परिभाषा नहीं होती है ,लेकिन आवेश की अवधारणा को समझने के बाद कुछ परिभाषा को रेखांकित कर सकते है जिसमे इलेक्ट्रॉन विधि (इलेक्ट्रोनों के प्रवाह को आवेश कहते है ) घर्षण विधि मुख्य है।

आवेश से संबंधित कुछ मुख्य प्रश्न|FAQ

आवेशों की प्रकृति क्या होती है?

आवेशों की प्रकृति योगात्मक होती है। अर्थात किसी भी निकाय का कुल आवेश उसमें उपस्थित समस्त आवेशों की बीजगणिती योग के बराबर होता है।

आवेश कौन सी राशि होती है?

आवेश एक अदिश राशि होती है परंतु आवेश में एक निश्चित दिशा होती है। धनात्मक आवेश हमेशा धारा की दिशा में प्रवाह करता है जबकि ऋणात्मक आवेश धारा की विपरीत दिशा में प्रवाह करता है

ब्रह्मांड में आवेश का कौन सा न्यूनतम मान संभव है?

प्रकृति में आवेश का सबसे न्यूनतम संभव मान मूल आवेश होता है

मुक्त इलेक्ट्रॉन क्या होता है?

जो इलेक्ट्रॉन अपने कक्ष को छोड़कर किसी अन्य कच्छ में प्रवेश कर जाता है, उसे इलेक्ट्रॉन को मुक्त इलेक्ट्रॉन कहते हैं और यही मुक्त इलेक्ट्रॉन आवेशों के लिए जिम्मेदार होता है।

आवेश S.I पद्धति व C.G.S पद्धति में क्या मात्रक होता है?

आवेश का S.I पद्धति में मात्रक कूलाम होता है जबकि C.G.S पद्धति में मात्रक स्टेट कूलाम होता है।

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